भ्रष्टाचार को लेकर देश में कई आंदोलन हुए हैं । आज़ादी के बाद से अब तक कई आंदोलनों का इतिहास गवाह है । लेकिन युवा सबसे ज्यादा जिस आंदोलन से जुड़ा वो अन्ना हजारे का आंदोलन था । देखते ही देखते लाखों युवा इस आंदोलन से जुड़ गए और इस आंदोलन की चिंगारी को हवा देने का काम किया सोशल मीडिया ने । युवाओं में ये बात घर करने लगी थी, भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज नहीं उठाई गई तो आने वाला वक्त और भी ज्यादा भ्रष्ट होगा । अन्ना के आंदोलन की सकारात्मकता कई जगहों पर दिखाई दी है । इसका असर फिल्मों पर भी दिखाई देने लगा । इस दौर में आप देख लीजिए कई फिल्में बनी है, जिनकी प्रेरणा ये आंदोलन बना है ।
ऐसा नहीं की इसके पहले फिल्मों भ्रष्टाचार का मुद्दा उठाया नहीं जाता था, उठता था लेकिन तरीका वो नहीं होता था जो आजकल होता है । ताजा फिल्म गब्बर को ही ले लीजिए भ्रष्टाचार से आजीज आ चुका शख्स 10 भ्रष्ट अफसरों को उठाता है, और एक की हत्या कर उसे चौराहे पर टांग देता हैं । इस विचार से सहमत नहीं हुआ जा सकता, लेकिन ये भी सच है कि जब सारी विद्याएं काम नहीं आती तो खौफ काम कर जाता है । फिल्म में गब्बर के ऐसा करने से उन तमामा अधिकारियों , कर्मचारियों में हड़कंप मच जाता है जो भ्रष्टाचार की चाशनी चाट चुके हैं । यही खौफ उन्हें अब ईमानदारी के साथ काम करने पर मजबूर भी करता है । युवा शक्ति को एकत्र उन्हें ईमानदारी का पाठ पढ़ाता है गब्बर क्योंकि कल इनमें से ही कईयों को प्रशासनिक पदों पर जाना है । फिल्म में एक संवाद भी आता है हर स्टूटेंड सरकारी अफसर नहीं बन सकता लेकिन हर अफसर एक स्टूडेंट जरूर होता है ।
युवाओं में भी बहुत कुछ कर गुजरने की चाह है । युवाओं की शक्ति और सोच को लेकर बनी फिल्म गब्बर का किरदार अचानक ना जाने क्यों जहन में घूमने लगा, खासकर झाबुआ में पिछले साल भर में हुए कुछ कामों, निर्णयों, कार्यशैली को लेकर ।
हां सही तो है झाबुआ में भी एक गब्बर आया था । तरीका फिल्म जैसा नहीं था, लेकिन उसने खौफ पैदा कर दिया था । काम नहीं किया जाएगा तो कार्रवाई होगी । निलंबन भी होगा, एफआईआर भी दर्ज होगी । समय से नौकरी पर नहीं पहुंचोगे तो वेतन भी रूकेगा । सुदखोरी करोगे तो जेल भी जाओगे । शहर के अतिक्रमण को लीलता जा रहा था, अतिक्रमण से राहत दी । हटाओ नहीं तोड़ा जाएगा । व्यापारियों ने बंद भी रखा लेकिन कोई फायदा नहीं, वो गब्बर था, वो डरता नहीं डराता था । झाबुआ का ये गब्बर कभी भी, कहीं भी निरीक्षण के लिए पहुंच जाता था । गब्बर की इस कार्यप्रणाली का असर भी हुआ झाबुआ की गुलाबी भवन में भी बाबुओं की चाल सुधरने लगी थी । बाकी लोग भी सतर्क हो गए । साल भर में इस प्रशासनिक गब्बर ने खूब वाह-वाही लूटी । और साल भर बाद स्थानांतरण हो गया । क्योंकि बाकी जगहों पर भी गब्बर की जरूरत है । वहां भी सुधार की जरूरत है । अब रतलाम की जनता कह रही है, काम करो क्योंकि गब्बर आ गया है । अब अलाली नहीं चलेगी । जो करेगा वो बख्शा नहीं जाएगा । यही खौफ का नतीजा है । कभी-कभी खौफ अच्छा होता है, क्योंकि ये वो काम करवा देता है जो सामान्य स्थित में नहीं होते । और सरकारी विभागों के जो हालात होते हैं, उससे ये तो साफ है कि हर जिले में एक गब्बर जरूरी है, ताकि लोगों के काम होते रहे हैं ।
Categories: वीर के तीर
Vastv me B Chadrachekhr ki kary prnali srahniy, hamesa yad rhegi
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बहुत शानदार लेख….
वास्तव में बी चंद्रशेखर जी ने जो झाबुआ के लिए किया वो सराहनीय है। उनका स्थानांतरण झाबुआ जिले की जनता के लिए दुर्भाग्यपूर्ण है ।
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