झाबुआ: करवा चौथ, सुहागिन महिलाओं द्वारा अपने पति की लंबी आयु और सुख-समृद्धि के लिए रखे जाने वाला एक महत्वपूर्ण पर्व है। इस वर्ष 20 अक्टूबर को ये श्रद्धा और धूमधाम के साथ मनाया जाएगा। ज्योतिषाचार्य पंडित द्विजेन्द्र व्यास ने जानकारी देते हुए बताया कि इस व्रत को निर्जला रखा जाता है और इसका पारण (व्रत तोड़ना) चंद्रमा के दर्शन और पूजा के बाद ही किया जाता है।
करवा चौथ का महत्व
करवा चौथ का व्रत कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को रखा जाता है। इस व्रत की परंपरा सदियों पुरानी है और इसका उद्देश्य पति की लंबी उम्र और वैवाहिक जीवन में सुख-समृद्धि की कामना करना है। पंडित द्विजेन्द्र व्यास ने बताया, “यह व्रत पति-पत्नी के रिश्ते में विश्वास और प्रेम को बढ़ाता है। इस का महत्व केवल धार्मिक ही नहीं, बल्कि सामाजिक दृष्टिकोण से भी अत्यधिक महत्वपूर्ण है।”
पूजा का शुभ मुहूर्त और चांद निकलने का समय
इस वर्ष करवा चौथ की पूजा का शुभ मुहूर्त 20 अक्टूबर की शाम 5:46 बजे से 7:02 बजे तक रहेगा। चांद निकलने का समय इस साल शाम 7:44 बजे है, जिसके बाद 7:53 बजे से चंद्रमा की पूजा कर व्रत का पारण किया जा सकता है।
भद्रा का साया
इस साल 2024 में करवा चौथ के दिन भद्रा का साया रहेगा, जो केवल 21 मिनट तक चलेगा। हालांकि, यह साया व्रत के प्रारंभिक समय में ही रहेगा, इसलिए इसका अधिक प्रभाव नहीं होगा। पंडित व्यास ने बताया कि इस समय के दौरान महिलाओं को करवा माता के 12 नाम लेकर व्रत की शुरुआत करनी चाहिए, ताकि भद्रा का असर व्रत पर न पड़े।
व्रत से जुड़ी धार्मिक मान्यताएं
पंडित व्यास ने बताया कि करवा चौथ की शुरुआत माता पार्वती द्वारा भगवान शिव के लिए किए गए व्रत से मानी जाती है। इसके अलावा, एक अन्य मान्यता के अनुसार, करवा चौथ व्रत से देवताओं की रक्षा राक्षसों से हो सकी थी, इसलिए इस व्रत को करने से पति की रक्षा और समृद्धि होती है।
करवा चौथ के क्षेत्रीय महत्व
करवा चौथ विशेष रूप से उत्तर प्रदेश, राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, मध्य प्रदेश, और हिमाचल प्रदेश में प्रमुखता से मनाया जाता है। इस पर्व पर सुहागिन महिलाएं दिनभर बिना जल के रहती हैं और चंद्रमा के दर्शन कर अपने पति की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि के लिए पूजा करती हैं।
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