झाबुआ के प्राचीन दक्षिण मुखी कालिका माता मंदिर में नवरात्रि के दौरान कांकड़ आरती आयोजन होता है । जिसमें बड़ी संख्या लोग आरती दर्शन करने पहुंचते हैं । कांकड़ आरती का आयोजन सुबह 5 बजे होता है ।
चेत्र और शारदेय नवरात्रि में काकड़ आरती का आयोजन होता है, सुबह 5 बजे लोग माता के आरती दर्शन के लिए पहुंचते हैं । नवमी के दिन काकड़ आरती में बड़ी संख्या में लोग पहुंचे और माता रानी के दरबार में हाजरी लगाई ।
9 दिनों तक यहां माता का विशेष श्रृंगार होता है । सुबह की आरती में महिलाओं को संख्या खासी होती है . 5 बजे होने वाली आरती के लिए 4.30 से लोगों का जुटना शुरू हो जाता है ।
दक्षिणमुखी कालिका माता मंदिर झाबुआ के राजा गोपाल सिंह जी ने 1865 में बनवाया था ।
झाबुआ के इस प्राचीन कालिका मंदिर काफी महत्व है । माना जाता है कि कोलकाता के बाद यही एक दक्षिणमुखी कालिका माता मंदिर है । इस मंदिर को झाबुआ के राज गोपालसिंह जी ने साल 1865 में बनवाया था । बाद में राजा उदय सिंह के शासन के दौरान इस मंदिर को नया स्वरूप दिया गया ।
अभी भी मंदिर का जीर्णोद्धार का कार्य चल रहा है । इसमें जनसहयोग से माता रानी के इस दिव्य दरबार को भव्य रूप दिया जा रहा है । नवरात्रि के दौरान यहां रात को होने वाले गरबे की भी खास है । क्योंकि ये गरबे विशेष तौर पर बच्चों के लिए होते हैं । ये एक तरह बच्चों के गरबा ट्रैनिंग स्कूल होता है । जहां बच्चे फ्री होकर देर तक बिना किसी बाधा के गरबे खेलते हैं और सीखते हैं ।
नवरात्रि के दौरान मंदिर समिति रोज यहां फलाहारी हलवे का प्रसाद माता को भोग लगाने के बाद वितरित करती है । इस प्रसाद के लिए समिति सदस्य देर रात से ही काम में जुट जाते हैं । बताते हैं कि रात करीब 1 बजे के बाद से इसकी तैयारी शुरू हो जाती है, ताकि सुबह आरती के बाद प्रसाद वितरित किया जा सके ।
मंदिर आने वाले भक्तों की संख्या का अंदाजा लगाना मुश्किल होता है, लेकिन कभी यहां प्रसाद भक्तों के लिए कम नहीं पड़ता । प्रसाद बनाने का काम मंदिर समिति से से जुड़े सदस्य ही करते हैं ।
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