झाबुआ, मध्यप्रदेश – झाबुआ जिले के खवासा में पहली बार भील प्रदेश एकता सम्मेलन का आयोजन किया गया, जिसमें मध्यप्रदेश, राजस्थान, गुजरात और महाराष्ट्र के आदिवासी समुदायों के लोगों ने बड़ी संख्या में भाग लिया। सम्मेलन में भील प्रदेश की मांग को लेकर आवाज बुलंद की गई, साथ ही शिक्षा, स्वास्थ्य, नशामुक्ति, रोजगार और बुनियादी सुविधाओं पर भी चर्चा हुई।

यह सम्मेलन अक्षय तृतीया के शुभ अवसर पर आयोजित किया गया था, जिसे आदिवासी समाज का सबसे बड़ा त्योहार माना जाता है। इस दिन समुदाय के लोग पारंपरिक रूप से खेती-बाड़ी के कार्यों की शुरुआत करते हैं। कार्यक्रम की शुरुआत में मंच पर हल पूजा की गई और परंपरागत तरीके से समाज के महापुरुषों व पुरखों की तस्वीरों को मंच पर सम्मान के साथ सजाया गया। इस आयोजन की खास बात यह रही कि मंच पर किसी राजनेता या बाहरी अतिथि को नहीं बैठाया गया, बल्कि समाज की विरासत, गौरव और स्वाभिमान के प्रतीक महापुरुष को प्राथमिकता दी गई
कार्यक्रम में राजस्थान के आसपुर, चौरासी और धरियावद विधानसभा क्षेत्र के विधायक मौजूद रहे, जबकि मध्यप्रदेश से सैलाना विधायक कमलेश्वर डोडियार ने प्रमुखता से भाग लिया।

भारत आदिवासी पार्टी के संस्थापक सदस्य कांतिलाल रोत ने कहा कि मध्यप्रदेश में 47 आदिवासी आरक्षित विधायक सीट हैं, लेकिन केवल कमलेश्वर डोडियार ही भीलों और आदिवासियों के मुद्दे उठाते हैं। उन्होंने कहा कि यदि ऐसे 30 विधायक विधानसभा में पहुंच जाएं, तो बिना आदिवासी समर्थन के कोई मुख्यमंत्री नहीं बन पाएगा। उन्होंने आदिवासी मुख्यमंत्री या कम से कम उपमुख्यमंत्री की मांग भी रखी।

विधायक कमलेश्वर डोडियार ने कहा कि यदि 10 विधायक भी एक साथ हो जाएं, तो भील प्रदेश की प्रक्रिया को मध्यप्रदेश में आगे बढ़ाया जा सकता है। उन्होंने बताया कि विधानसभा में भील प्रदेश को लेकर सवाल पूछे गए थे, और जवाब में बताया गया कि नए राज्य के गठन की प्रक्रिया संसद से शुरू होती है। इस पर उन्होंने कहा – “अब लगता है सांसद भी बनना पड़ेगा।”

आदिवासी परिवार संगठन के संस्थापक भंवरलाल परमार ने सम्मेलन में संबोधित करते हुए कहा कि भील प्रदेश की मांग इसलिए जरूरी है ताकि हम अपनी परंपराओं, रिवाजों और भाषाओं को संगठित रूप से और अधिक समृद्ध बना सकें। उन्होंने कहा कि हमारी सांस्कृतिक विविधता हमारी ताकत है, और हम एक-दूसरे से बहुत कुछ सीख सकते हैं। उदाहरण देते हुए उन्होंने बताया कि राजस्थान और झाबुआ-अलीराजपुर में विवाह की विधियों में अंतर है, लेकिन झाबुआ-अलीराजपुर की परंपराएं अन्य क्षेत्रों में भी पहुंचनी चाहिए। इसी तरह, गुजरात में पुरखों की पूजा की पद्धति अधिक व्यवस्थित है, जिसे अन्य राज्यों में भी अपनाया जा सकता है।

भंवरलाल परमार ने यह भी घोषणा की कि आने वाले समय में देशभर के आदिवासी संगठनों को एकजुट करने का अभियान चलाया जाएगा। उन्होंने कहा कि यदि किसी भी राज्य में किसी आदिवासी व्यक्ति के साथ अन्याय या घटना होती है, तो देशभर के सभी आदिवासी संगठन अपने-अपने जिलों में विरोध स्वरूप ज्ञापन सौंपेंगे और उचित कार्रवाई की मांग करेंगे।
वक्ताओं ने चिंता जताई कि जयस जैसी सामाजिक संस्थाएं चुनाव के समय बिखर जाती हैं, इसलिए जरूरी है कि दलगत राजनीति से ऊपर उठकर एकता कायम की जाए। उन्होंने अपील की कि कांग्रेस और भाजपा के नेताओं के साथ मंच साझा करने से बचा जाए और एकजुटता के साथ भील प्रदेश की मांग को आवाज दी जाए।
सम्मेलन में यह भी कहा गया कि अगर पंचायत और जिला पंचायत स्तर पर भी अपने प्रतिनिधि चुने जाएं, तो आगे चलकर विधानसभा और संसद तक आदिवासी नेतृत्व को मज़बूती दी जा सकती है।
आदिवासी परिवार संगठन के संस्थापक भंवरलाल परमार ने सम्मेलन में संबोधित करते हुए कहा कि भील प्रदेश की मांग इसलिए जरूरी है ताकि हम अपनी परंपराओं, रिवाजों और भाषाओं को संगठित रूप से और अधिक समृद्ध बना सकें। उन्होंने कहा कि हमारी सांस्कृतिक विविधता हमारी ताकत है, और हम एक-दूसरे से बहुत कुछ सीख सकते हैं। उदाहरण देते हुए उन्होंने बताया कि राजस्थान और झाबुआ-अलीराजपुर में विवाह की विधियों में अंतर है, लेकिन झाबुआ-अलीराजपुर की परंपराएं अन्य क्षेत्रों में भी पहुंचनी चाहिए। इसी तरह, गुजरात में पुरखों की पूजा की पद्धति अधिक व्यवस्थित है, जिसे अन्य राज्यों में भी अपनाया जा सकता है।
भंवरलाल परमार ने यह भी घोषणा की कि आने वाले समय में देशभर के आदिवासी संगठनों को एकजुट करने का अभियान चलाया जाएगा। उन्होंने कहा कि यदि किसी भी राज्य में किसी आदिवासी व्यक्ति के साथ अन्याय या घटना होती है, तो देशभर के सभी आदिवासी संगठन अपने-अपने जिलों में विरोध स्वरूप ज्ञापन सौंपेंगे और उचित कार्रवाई की मांग करेंगे।
कार्यक्रम के दौरान जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले की कड़ी निंदा की गई और हमले में मारे गए लोगों को श्रद्धांजलि अर्पित की गई। साथ ही, हाल ही में दिवंगत हुए आदिवासी समाज के सामाजिक कार्यकर्ताओं को भी श्रद्धांजलि दी गई। सभी लोगों ने दो मिनट का मौन रखकर श्रद्धांजलि अर्पित की!
कार्यक्रम के दौरान सांस्कृतिक प्रस्तुतियों के साथ-साथ कई सामाजिक कार्यकर्ताओं ने भी संबोधन दिया, जिनमें भंवरलाल परमार, कांतिलाल रोत, अनिल कटारा (चौरासी विधायक), धरियावद विधायक, थावरचंद डामर (विधायक) समेत अन्य गणमान्य शामिल रहे।