झाबुआ।
जब पूरी दुनिया आज विश्व धरोहर दिवस मना रही है, तब झाबुआ की ऐतिहासिक पहचान — तहसील कार्यालय के बाहर रखी प्राचीन तोप— उपेक्षा और अनदेखी का प्रतीक बन गई है। कभी गौरवशाली इतिहास की गवाही देने वाली यह तोप, अब आम लोगों के लिए सिर्फ बैठने की एक बेंच बनकर रह गई है।
स्थानीय लोगों ने कई बार इसके संरक्षण और रखरखाव की मांग की, लेकिन प्रशासन ने अब तक इस ओर कोई गंभीर पहल नहीं की। यह तोप ही नहीं, झाबुआ जिले की कई अन्य ऐतिहासिक धरोहरें भी उपेक्षा के अंधेरे में धूल फांक रही हैं।

इन धरोहरों की भी हालत खराब:
- देवल फलिया का प्राचीन मंदिर
- करीब 1800 वर्ष पुराना महिषासुर मर्दिनी मंदिर
- कुशालपुर का प्राचीन शिव मंदिर
- रोटला, नरवालिया पारा, और भगोर के प्राचीन मंदिर, जिनमें दुर्लभ प्रतिमाएं मौजूद हैं
इन स्थलों की स्थापत्य कला और ऐतिहासिक मूर्तियां संरक्षण की बाट जोह रही हैं। क्षेत्रवासियों का कहना है कि अगर समय रहते ध्यान नहीं दिया गया तो ये धरोहरें आने वाली पीढ़ियों को केवल किस्सों में सुनाई देंगी।
“प्रशासन को चाहिए कि वह इन धरोहरों के संरक्षण को प्राथमिकता में रखे, ताकि हमारी सांस्कृतिक विरासत सुरक्षित रह सके,” एक स्थानीय नागरिक ने कहा।
विश्व धरोहर दिवस केवल समारोह का दिन नहीं, बल्कि हमारी ज़िम्मेदारी याद करने का मौका है — अपनी विरासत को सहेजने का संकल्प लेने का दिन।