दशहरे पर नीलकंठ पक्षी को देखने की परंपरा भारत में शुभता और सौभाग्य से जुड़ी हुई है। नीलकंठ पक्षी (Indian Roller) को पौराणिक कथाओं और धार्मिक मान्यताओं में विशेष स्थान प्राप्त है। इसे देखने के पीछे मुख्य कारणों में धार्मिक और सांस्कृतिक प्रतीकात्मकता शामिल है:
नीलकंठ भगवान शिव का प्रतीक:
भगवान शिव का प्रतीक: नीलकंठ का नाम भगवान शिव से जुड़ा हुआ है, जिन्हें ‘नीलकंठ’ कहा जाता है क्योंकि उन्होंने समुद्र मंथन के दौरान निकले विष को ग्रहण किया था, जिससे उनका कंठ नीला हो गया। नीलकंठ पक्षी को देखने से भगवान शिव का आशीर्वाद और सुरक्षा प्राप्त होती है, ऐसी मान्यता है।
शुभता और विजय का प्रतीक: दशहरा बुराई पर अच्छाई की जीत का पर्व है, जो भगवान राम द्वारा रावण के वध का प्रतीक है। मान्यता है कि भगवान राम ने लंका पर चढ़ाई से पहले नीलकंठ पक्षी देखा था, जो उनके लिए शुभ साबित हुआ। इसलिए, दशहरे पर नीलकंठ को देखना विजय और सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है।
सकारात्मक ऊर्जा: नीलकंठ को देखना अच्छा शगुन माना जाता है, क्योंकि इसे शुभ और सकारात्मक ऊर्जा का प्रतीक माना जाता है। दशहरे के दिन लोग इसे देखकर अपने जीवन में सफलता और सुख-समृद्धि की कामना करते हैं।
दशहरे पर इसके अलावा भी और कई तरह परंपराओं का निर्वाह किया जाता है । दशहरे के मौके पर शस्त्र पूजा की परंपरा है । सरकारी तौर पर पुलिस शस्त्रागार और थानों में शस्त्र पूजन किया जाता है । दशहरे पर लोग अपने घरों में भी अपने हथियारों की पूजा करते हैं । दशहरे पर शमी पूजन की परंपरा भी रही है ।
दशहरे पर देश के अलग-अलग इलाकों में रावण दहन की परंपरा रही है । लेकिन कुछ जगह ऐसी भी जहां रावण का दहन नहीं किया जाता है, लेकिन वहां का दशहरा की धूम विदेश तक है । हिमाचल प्रदेश के कुल्लू में रावण दहन नहीं होता ब्लकि लंका दहन किया जाता है .साथ ही यहां दशहरा पर्व 10 दिन मनाया जाता है । आखिर दिन देवताओं की रथ यात्रा निकलती है । कु्ल्लू के इस दशहरे को देखने के लिए दूर दूर से लोग आते हैं ।
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